Thursday, 3 January 2013

उम्र

उस पार एक मकान था, नदी बहती थी बीच अपने
बुढा गया था काफ़ी, सुफैद हो चला था
पर बना था जब तो क्या शान से इतराता था
ऊँची दीवारें , मज़बूत खम्बे , चिकना पलसतर

अब हालात कुछ ऐसे हैं मियां के
झरझराते हैं हल्की सी हवा भी लहलहाए तो

उम्र कम हो तो जवानी का जोश ज्यादा होता है
गुरूर भी कम नहीं होता
सुनते भी नहीं हैं बात किसी की,
ना मानते है बुजुर्गों का कहा

फिर जब अपनी उम्र बढती है तो ज़िन्दगी सिखाती हैं
जो सीख जाये तो अच्छा वर्ना समय की लाठी की मार सिखा देती है

बचपन में कहते हैं बनेंगे बहुत कुछ, और बन भी जाते हैं
मंदिरों में जल चढाते हैं, गुरद्वारों में शीश नवाते हैं
मस्जिद में अल्लाह ढूंढते हैं, गिरिजा में मोम जलाते हैं
इंसान अच्छे बन पाते हैं या सिर्फ बड़े हो जाते हैं ?

2 comments:

  1. AT the cost of cheesy, iss dil ka kya karoon, main kya karoon, main kya karoon...but seriously, there should've been more to this, itne se dil bharta nahi, kya karoon.

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  2. Thanks a lot for reading and responding :)

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